About Shodashi

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ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं सौः: ॐ ह्रीं श्रीं क ए ऐ ल ह्रीं ह स क ह ल ह्रीं स क ल ह्रीं सौः: ऐं क्लीं ह्रीं श्रीं 

It was in this article too, that The nice Shankaracharya himself set up the picture of a stone Sri Yantra, perhaps the most sacred geometrical symbols of Shakti. It may even now be seen nowadays while in the interior chamber of your temple.

सच्चिद्ब्रह्मस्वरूपां सकलगुणयुतां निर्गुणां निर्विकारां

The Sri Chakra is really a diagram formed from nine triangles that surround and emit out in the central point.

केवल आप ही वह महाज्ञानी हैं जो इस सम्बन्ध में मुझे पूर्ण ज्ञान दे सकते है।’ षोडशी महाविद्या

ह्रीं‍मन्त्राराध्यदेवीं श्रुतिशतशिखरैर्मृग्यमाणां मृगाक्षीम् ।

षोडशी महाविद्या प्रत्येक प्रकार की मनोकामनाओं को पूर्ण करने में समर्थ हैं। मुख्यतः सुंदरता तथा यौवन से घनिष्ठ सम्बन्ध होने के परिणामस्वरूप मोहित कार्य और यौवन स्थाई रखने हेतु इनकी साधना अति उत्तम मानी जाती हैं। Shodashi त्रिपुर सुंदरी महाविद्या संपत्ति, समृद्धि दात्री, “श्री शक्ति” के नाम से भी जानी जाती है। इन्हीं देवी की आराधना कर कमला नाम से विख्यात दसवीं महाविद्या धन, सुख तथा समृद्धि की देवी महालक्ष्मी है। षोडशी देवी का घनिष्ठ सम्बन्ध अलौकिक शक्तियों से हैं जोकि समस्त प्रकार की दिव्य, अलौकिक तंत्र तथा मंत्र शक्तियों की देवी अधिष्ठात्री मानी जाती हैं। तंत्रो में उल्लेखित मारण, मोहन, वशीकरण, उच्चाटन, स्तम्भन इत्यादि जादुई शक्ति षोडशी देवी की कृपा के बिना पूर्ण नहीं होती हैं।- षोडशी महाविद्या

ह्रीं‍श्रीर्मैं‍मन्त्ररूपा हरिहरविनुताऽगस्त्यपत्नीप्रदिष्टा

Devotees of Shodashi interact in many spiritual disciplines that aim to harmonize the thoughts and senses, aligning them With all the divine consciousness. The following factors outline the progression towards Moksha by means of devotion to Shodashi:

षोडशी महाविद्या : पढ़िये त्रिपुरसुंदरी स्तोत्र संस्कृत में – shodashi stotram

॥ अथ श्रीत्रिपुरसुन्दरी अपराध क्षमापण स्तोत्रं ॥

वन्दे तामष्टवर्गोत्थमहासिद्ध्यादिकेश्वरीम् ॥११॥

Lalita Jayanti, a big Competition in her honor, is celebrated on Magha Purnima with rituals and communal worship situations like darshans and jagratas.

बिभ्राणा वृन्दमम्बा विशदयतु मतिं मामकीनां महेशी ॥१२॥

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